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तुझसे मायूस तो हो जाऊँ कहां जाऊँ मैं / कांतिमोहन 'सोज़'

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तुझसे मायूस तो हो जाऊँ कहाँ जाऊँ मैं ।
ज़न्दगी आ मुझे बहला तुझे बहलाऊँ मैं ।।

आ कभी सीख कभी मुझको सिख तर्ज़े-वफ़ा
कभी थामूँ कभी उँगली तुझे पकड़ाऊँ मैं ।

छेडख़ानी से कभी बाज़ न आए कोई
तुझसे मिलकर कभी तड़पूँ कभी तड़पाऊँ मैं ।

कभी ठुकराऊँ खिलौने का तक़ाज़ा तेरा
और कभी तेरे लिए चाँद उठा लाऊँ मैं ।

तू है एक जोत मुझे राह दिखानेवाली
तू कोई ज़ख़्म नहीं क्यूँ तुझे सहलाऊँ मैं ।

कम नहीं मैं भी तेरा काम बना सकता हूँ
ले सँवर ले कि तुझे आइना दिखलाऊँ मैं ।

तेरे चेहरे से तबस्सुम का उजाला लेकर
सोज़ एक फूल के मानिन्द बिखर जाऊँ मैं ।।