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तुम तो सदा रहे अनजान / शशि पाधा

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तुम तो रहे तटस्थ सदा
मैं लहरों सी चंचल गतिमान
संग बहे, न संग चले
क्या इसका तुझे हुआ था भान?

श्यामल शीतल साँझ सलोनी
सपनों सी संग बनी रही
मांझी के गीतों की गुंजन
इन अधरों पे सजी रही

    मन्द पवन छुए जो आँचल
   मन्द -मन्द मैं गाऊँ गान
  मेरे गीतों की सरगम से
तुम तो सदा रहे अनजान।

अस्ताचल पर बैठा सूरज
बार -बार क्यों मुझे बुलाये
स्वर्णिम किरणों की डोरी से
बांध कभी जो संग ले जाये

      इक बार कभी जो लौट न आऊँ
     दूर कहीं भर लूं उड़ान
    टूटे बन्धन की पीड़ा का
   तुझे हुआ थोड़ा अनुमान?

पल -पल जीवन बीत गया
साधों का घट रीत गया
लहरों ने न तुझे हिलाया
और किनारा जीत गया

    तुम तो, तुम ही बने रहे
   थी मुझसे कुछ पल की पहचान
  पागल मन क्यों फिर भी कहता
  तुझ में ही बसते मन प्राण ?