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तुम सताने पर तुले हो / संजय सिंह 'मस्त'

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तुम सताने पर तुले हो!
हम तुम्हें क्या छोड़ देंगे!

विष वमन करता तुम्हारा,
फण कुचल कर ही रहेंगे!
प्रण लिया है हम सभी ने,
दंभ दल कर ही रहेंगे।

यह कि मनमानी तुम्हारी,
सतत कैसे चल सकेगी!
ज़ुल्म हम पर तोड़ने की,
दाल कब तक गल सकेगी!

तुम रुलाने पर तुले हो!
हम तुम्हें क्या छोड़ देंगे!

तुम हमारा धन हमीं को,
भीख जैसा दे रहे हो!
और ऐसा पाप करके,
पुण्य क्या तुम ले रहे हो!

सभ्यता का ढोंग रचते,
फूट सबमें डालते हो।
सोचते हो सदा ऐसा-
रहेगा भ्रम पालते हो।

तुम मिटाने पर तुले हो,
हम तुम्हें क्या छोड़ देंगे!