भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू बादल बन / रामनरेश पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:47, 4 जुलाई 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम बादल बन.

मरू में बरसो,
मधु क्षण सिरजो,

तुम बादल बन.

खेतों में गा,
मदों पर छा,

तुम बादल बन.

तुम जीवन दो,
तुम मधुवन दो,

तुम बादल बन.

गा, गा, मुसका,
मुसका, गा, गा,

तुम पागल बन.
छंदों पर छा,
रागों में आ,

तुम रागल बन.
तुम पागल बन.
तुम बादल बन.