भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा है / अशोक चक्रधर

Kavita Kosh से
See ani (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:39, 30 अप्रैल 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि: अशोक चक्रधर

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

तू गर दरिन्दा है तो ये मसान तेरा है, अगर परिन्दा है तो आसमान तेरा है।

तबाहियां तो किसी और की तलाश में थीं कहां पता था उन्हें ये मकान तेरा है।

छलकने मत दे अभी अपने सब्र का प्याला, ये सब्र ही तो असल इम्तेहान तेरा है।

भुला दे अब तो भुला दे कि भूल किसकी थी न भूल प्यारे कि हिन्दोस्तान तेरा है।

न बोलना है तो मत बोल ये तेरी मरज़ी है, चुप्पियों में मुकम्मिल बयान तेरा है।

तू अपने देश के दर्पण में ख़ुद को देख ज़रा सरापा जिस्म ही देदीप्यमान तेरा है।

हर एक चीज़ यहां की, तेरी है, तेरी है, तेरी है क्योंकि सभी पर निशान तेरा है।

हो चाहे कोई भी तू, हो खड़ा सलीक़े से ये फ़िल्मी गीत नहीं, राष्ट्रगान तेरा है।