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तेरे आने की ख़बर आते ही डर लगने लगा / शहरयार
Kavita Kosh से
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तेरे आने की ख़बर आते ही डर लगने लगा
ग़ैर का लगता था जो वह अपना घर लगने लगा
क्या हरीफों में मेरे सूरज भी शामिल हो गया
ज़र्द से सन्नाटे का मजमा बाम पर लगने लगा
याद आना था किसी इक ख़्वाब आंखें करबला
जो जुदा तन से हुआ वो मेरा सर लगने लगा
जाने क्या उफ्ताद पड़ने को है मुझ पर दोस्तो
मोतबर लोगों को अब मैं मोतबर लगने लगा।