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था कहा ‘प्रिये’ ‘पंकिल’ प्रणयी की तरूण वयस बीतती नहीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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था कहा ‘प्रिये’ ‘पंकिल’ प्रणयी की तरूण वयस बीतती नहीं।
चन्द्रिका-धौत-निशि में बॅंटती वारूणी कभीं रीतती नहीं।
रे प्राण! प्रियतमा के कोमल चरणों की रेणु ललक परसो।
विहॅंसो प्रसून-सा बहो सुरभि-सा चातक चिड़िया सा तरसो।
तुम नित प्रियतम की प्राणेश्वरि तक प्रेम-पत्रिका पहुँचाना।
तुम जिधर चलोगे उधर मार्ग जग में तुमसे क्या अनजाना।“
आ राधा-मानस-राजहंस! बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥64॥