भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
थोड़ी सी बेवफाई करली है ज़िन्दगी से / मोहम्मद इरशाद
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 11 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मोहम्मद इरशाद |संग्रह= ज़िन्दगी ख़ामोश कहाँ / म…)
थोड़ी सी बेवफाई करली है ज़िन्दगी से
क्यूँ देखते हैं मुझको सब लोग बेरूख़ी से
सूरज का है ये दावा कि रोशन जहाँ मुझसे
मैं तिरगी निकाल के लाया हूँ रोशनी से
चलने से पहले सोच लो इस राहे ज़िन्दगी में
है हादसे ही हादसे मिलना है तीरगी से
चेहरे वही तमाम मेरे सामने हैं आज
ख़्वाबो में जो देखा करता था अजनबी से
क्या छोड़के जायेंगें बच्चों के लिए हम
अब वक्त कर रहा है ये सवाल हम सभी से
‘इरशाद’ तुम भी इनकी बातों में आ गये
शैतान सी फ़ितरत हैं दिखते आदमी से