भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दम / हरिऔध

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:14, 19 मार्च 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों लिया यह न सोच पहले ही।
आप तुम बारहा बने यम हो।
हैं खटकते तुम्हें किये अपने।
क्या अटकते इसी लिए दम हो।