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दुःख की लम्बी राहों में भी सुख की थोड़ी आस रहे / देवमणि पांडेय

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दुःख की लम्बी राहों में भी सुख की थोड़ी आस रहे
फिर ख़ुशियों के पल आएंगे दिल में ये एहसास रहे

इस दुनिया की भीड़ में इक दिन हर चेहरा खो जाता है
रखनी है पहचान तो अपना चेहरा अपने पास रहे

आदर्शों को ढोते-ढोते ख़ुद से दूर निकल आए
और अभी जाने कितने दिन देखो ये वनवास रहे

कहीं भी जाऊँ दिल का मौसम इक जैसा ही रहता है
यादों के दरपन में कोई चेहरा बारो-मास रहे

लफ़्ज़ अगर पत्थर हो जाएं रिश्ते टूट भी सकते हैं
बेहतर है लहजे में अपने फूलों जैसी बास रहे