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दूर गए हो चले कहाँ तुम / पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

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दूर गए हो चले कहाँ तुम, भार हुए दिन-रात।
चैन सौंपकर अपना पायी, आँसू की सौगात॥
वादे तुमने किए हजारों, लेकिन नहीं निभाया।
राह अभी चलना है बाकी, अपना हाथ छुड़ाया।
जर्जर मन में नित यादों का, चलता झंझावात।
दूर गए हो चले कहाँ तुम, भार हुए दिन-रात॥
बर्फ अनवरत पीड़ाओं की, लगी हृदय पर गिरने।
धीरे-धीरे लगा क्षितिज पर, घोर तिमिर भी घिरने।
बोझिल कदमों को आगे का, पंथ नहीं है ज्ञात।
दूर गए हो चले कहाँँ तुम, भार हुए दिन-रात॥
सुख सब उड़े तितलियों जैसे, रंग छोड़ कर अपने।
पलकों को भारी लगते हैं, वो बासंती सपने।
दो-दो हाथ पड़े नित करना, ग़म की बिछी बिसात।
दूर गए हो चले कहाँ तुम, भार हुए दिन-रात॥