भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देव, जीने का भाष्य मुझे दे दो / मोहन निराश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 21 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन निराश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGh...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देव, जीने का भाष्य मुझे दे दो
अन्धेरे में प्रकाश मुझे दे दो
विज्ञ बना परिज्ञान मुझे दे दो
इयत्ता दो दृष्टि प्रकाश मुझे दे दो
यह जग तेरा तुझको ही अर्पण
है देना तो आकाश मुझे दे दो
ज्ञान मुझे दे दो विज्ञान मुझे दे दो
अक्षर ब्रह्म शब्दाकाश मुझे दे दो
जीने-मरने का हर लो अभिशाप
दे दो मोक्ष का कैलाश मुझे दे दो