भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देवताओं को रिझाया जा रहा है / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:46, 2 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem>द...)
देवताओं को रिझाया जा रहा है
पर्व कुर्सी का मनाया जा रहा है
भोर फाँसी की गई आ पास शायद
क़ैदियों को जो सजाया जा रहा है
आदमी की बौनसाई पीढ़ियों को
रोज़ गमलों में उगाया जा रहा है
जाम रखकर तलहथी पर भूख की अब
जागरण को विष पिलाया जा रहा है
पारदर्शी तीर धर लो शिंजिनी पर
व्यूह रंगों का बनाया जा रहा है