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दोहा सप्तक-59 / रंजना वर्मा

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आँखों में आशा किरण, साँस साँस मधुगन्ध।
हाथों में गंगाजली, लिखती प्रणय - प्रबन्ध।।

चुटकी भर सिंदूर ने, ऐसा रचा वितान।
रोम रोम झंकृत हुआ, फूटा जीवन गान।।

नाथ दया की दृष्टि से, कीजे मुझे सनाथ।
करुणाकर रख दीजिये, सिर पर अपना हाथ।।

लेख विधाता का लिखा, कौन सका है मेट।
सबको मिलता है वही, जो देता विधि भेंट।।

बोलें मीठे बोल नित, जो हर लें मन पीर।
काक बोल कटु बोल कर, देता है मन चीर।।

धाम राम के जन्म का, कब लेगा आकार।
नयन प्रतीक्षा कर रहे, होगा क्या प्राकार।।

दूर न रहिये लक्ष्य से, नित्य रहें गतिमान।
सदा कर्मरत यदि रहे, हो जाये कल्यान।।