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न चाहकर भी मुझे जाना ही होगा / येहूदा आमिखाई

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मेरे पिता ने युद्धों में बिताए चार वर्ष
और अपने शत्रुओं से घृणा नहीं की, प्यार भी नहीं किया
और तब मैं भी जानता हूँ कि किसी तरह वहाँ भी
वे मेरे निर्माण में लगे हुए थे, अपनी शान्तियों में से
जो इतनी विरल और बिखरी हुई थीं, जिन्हें उन्हों ने
बम-विस्फोटों और धुंए के बावजूद चमके रखा
और अपनी माँ के दिए हुए कड़े होते केक के बीच, उन्हें
अपने झोले में रख लिया
और अपनी आँखों में उन्होंने रख लिया
बेनाम मृतकों को
उन्हों ने सम्हाल लिया उनको, ताकि किसी दिन
उनकी दृष्टि से मैं उन्हें देख सकूँ और प्यार कर सकूँ -- ताकि मैं
भय से भर न जाऊँ जैसे वे सारे मर गए...
उन्होंने अपनी आँखों को उनसे भर लिया, लेकिन तब भी वह बेकार रहा
अपने सारे युद्धों में न चाहकर भी मुझे जाना ही होगा


अँग्रेज़ी से अनुवाद  : निशान्त कौशिक