भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नंगी ही आती है आज़ादी / विलिमीर ख़्लेबनिकफ़ / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:21, 19 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विलिमीर ख़्लेबनिकफ़ |अनुवादक=अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नंगी ही आती है आज़ादी
सबके दिलों में फूल खिलाती हुई
और हम उसके साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलते हुए
आकाश से गहरे दोस्तों की तरह बात करते हैं ।

खिड़कियों पर लड़कियों को गाने दो
प्राचीन अभियानों के बारे में प्रयाणगीत
सूरज की वफ़ादारी के बारे में और
सबसे ज़्यादा आज़ाद जनता के गीत।

19 अप्रैल 1917

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
           Велимир Хлебников
        Свобода приходит нагая…

Свобода приходит нагая,
Бросая на сердце цветы,
И мы с нею в ногу шагая
Беседуем с небом на ты.

Пусть девы споют у оконца
Меж песен о древнем походе,
О верноподанном Солнца
Самосвободном народе.

19 апреля 1917