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नई धार / विजेन्द्र अनिल

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मेरे लिए हर कविता
मुल्क की सूरत सँवारने का औज़ार है
हर गीत जंगली फूलों की महक
और हर कथा
मुल्क की देह पर उगे
गुमनाम घावों के लिए
नश्तर

मैं मुल्क की सूरत
बेहतर बनाना चाहता हूँ
जंगली फूलों को
गुलाबों की पाँत में
खड़ा करना चाहता हूँ
और मुल्क की देह पर
दर्दनाशक मलहम की तरह
पसर जाना

चाहता हूँ
लेकिन
इससे पहले कि
मुल्क की सूरत बेहतर हो
इसकी देह पर उगे
घावों का इलाज ज़रूरी है

एक नश्तर
समय की फ़ौरी माँग है
दोस्तो, मौसम को ख़ुशनुमा बनाने के लिए
गीतों को टेसू के फूलों की तरह
लाल बनाने के लिए
प्यार को एक नई शक़्ल दें
कविता को
एक नई धार दें।