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नये तेवर की कविता / अंजना टंडन

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सुनो कवि इस बार

मेरे रूप को लिखने से पहले
नथ, नुपुर, टीका, कगंन
किसी सरोवर में उछाल आना
बिंदिया, सुरमा, लाली ,मेंहदी
लिखने में समय मत गँवाना,

सौन्दर्य को मेरे
केसरिया रंगत तीखे नक्श
से ही बस मत मापना,
बाँके कजरारे नयनों से भी
कोई तीर मत चलवाना,

माधर्ु्य और रति रस का
चलन इनदिनों कम है
ऐसे क्षणिक भावों का मन नहीं,
किसी इश्क और मुश्क की
घिसी पिटी बात भी मत दोहराना

गर देखना है तो
क्रांन्तिकारी उच्छ्वास देखना
होसलौं में बसी
शाश्वत सी अग्न देखना
क्षितिज से भी ऊँची
पंखों की परवाज देखना
सपट निर्लज्ज सी
ईमान की आशिकी देखना,

गर मुझे सजाना हो तो
ललाट पर कुछ पसीना उगाना,
और तलवों में कुछ काँटे
पीठ पर कुछ दृढ़ता की रपट
और आँखों में सितारे,

लचक शमशीर की मत लिखना
लक्ष्य किसी तीर का सा लिखना,

नये तेवर की कविता हूँ मैं
इस बार
चिलमन के पार का कुछ लिखना ।