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नहीं उनसे कभी कुछ माँगता हूँ / कैलाश झा 'किंकर'

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नहीं उनसे कभी कुछ माँगता हूँ
शुरू से ही मैं संतोषी रहा हूँ।

बड़े अरमान से यह बाग़ सजता
खुशी है मैं भी इसमें इक लता हूँ

अनाड़ी इसलिए कहती है दुनिया
नहीं दौलत के पीछे भागता हूँ।

नहीं चिन्ता करें उसकी ज़रा भी
मैं उसको जानता हूँ, आइना हूँ।

उड़ा लो आज खिल्ली कह के मूरख
मगर मैं हूँ समय, सब देखता हूँ।

कई वर्षों से उन्नत है खगड़िया
अदीबों के लिए बिल्कुल डटा हूँ।

हजारों रास्ते करते प्रतीक्षा
मगर वह आलसी है, जानता हूँ।

भरोसा बाजुओं का दिल में केवल
भरोसे रह न जीना चाहता हूँ।