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नौनिहाल / अमरेन्द्र

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ये बूढ़े क्या ठहर सकेंगे इन बच्चों के आगे
अपनी बुद्धि, ज्ञान बात से सबको ही चकरा दे
बाबा, दादा, नाना ने जिसको ना देखा होगा
कम्प्यूटर पर बैठे-बैठे दुनिया को दिखला दे ।

इनकी आँखों में जंगल है, सूरज-चाँद सितारे
धरती जो-जो पूछे इनसे पल में ही बतला दे ।
जिन भूतों का भय औघड़ और ओझा को दहलाए
भूत पकड़कर ये ले आए, भूतों को दहला दे ।

पानी, हवा, अनल की बातें क्या इनके हैं सम्मुख
अपनी चुटकी की रगड़न से पत्थर को पिघला दे
संभव है सिक्का वह नभ पर चाँद बना दिखलाए
एक बार अपनी ताकत से सिक्का जो उछला दे ।

वह सब इनको ज्ञात देवता भी ना जिसको जाने
लेकिन क्या बूढ़ों की दुनिया को भी ये पहचाने ?