भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार : बीसवीं सदी-1 / प्रभात रंजन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 23 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात रंजन |संग्रह= }} <Poem> एक प्यार यह कि जो उमगत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


एक प्यार यह कि जो
उमगता,
पढ़-पढ़
उपन्यास, कहानी, कविता।
-सजे हुए ड्राइंग रूम,
नए माडल की कार
होटल और बार
'ओह कपूर,
व्हाट ए वन्डरफ़ुल शाट
-शानदार।

-'मास्टर जी
कैसे लिख लेते हैं
कविता इतनी सुन्दर?
(मास्टर जी-
ग़रीब विद्यार्थी,
भावुक आदर्शों में पले।)
मगर स्वप्न नहीं पूरे हुए
बहक चले,
मास्टर जी
चलें वहाँ
मिलते हों अलग रहकर जहाँ
ज़मीं और आस्माँ...'

'भाग गई बेटी'
है अख़बारों की सुर्ख़ी
लेकर गहने-कपड़े
नगदी
कई हज़ार !
कहते हैं लोग-बाग
कारण था महज प्यार।

(पर...
बेटी फिर वापस
मास्टर जी गिरफ़्तार
'बहकाता है
शरीफ़ों की बहू-बेटियों को
सूअर, नालायक, मक्कार'...)