भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:42, 4 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुप्रिया सिंह 'वीणा' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम सौरभ सुवासित ई संसार छै,
हार में जीत छै, जीत में हार छै।

मन कोमल गगन के ई विस्तार छै,
प्रेम रवि सें ही ज्योतित ई संसार छै।

प्रेम से ही वसंत के आस-विश्वास छै,
प्रेम छै तेॅ जिनगी में हास-हुलास छै।

एक विश्वास छै ई जहाँ दू कमल खिलै,
त्याग नौका पर बैठी केॅ दू दिल मिलै।

जगत में प्रेम के महिमा बड़ी अपार छै,
बाधा बंधन सें ई उपर, ई जीवन के सार छै।

प्रेम सें बनै छै आदमी सच में महान,
प्रेम धरती पर ईश्वर के अवतार छै।