भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम करते हुए लोग / रवीन्द्र दास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:12, 11 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र दास }} <poem> कितने हास्यास्पद होते हैं प्र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितने हास्यास्पद होते हैं प्रेम करते लोग
कितने दयनीय !
हाँफ़ते हुए, भिनभिनाते हुए भी
रहते हैं इस अभिमान में चूर
कि पा लिया जोड़ीदार को
तो जीत लेंगे संसार को ।

सारे संसार से मुँह छुपाए,
अपने आप से नज़रें चुराए
न जाने किस मुर्दनी के आगोश में बिलबिलाते रहते हैं
प्रेम करते हुए लोग।

आपको अगर प्रेम भी हो इंसानों से
तो हो जाएगी अनास्था
'गर देख लें सर-ऐ-आम इन
प्रेम करते हुए लोगों को ।

कीचड़ भरा बरसाती रास्ता
और आप चलने को मजबूर
तब जो हालत होगी आपकी
कुछ वैसी ही
जब गुज़रना पड़े
जहाँ गुंथे पड़े हों -
प्रेम करते हुए लोग।

कोई सहमत हो, या न हो
फिर भी यह आम लोगों पर अत्याचार है
कि सार्वजानिक स्थानों पर
भिनभिनाते रहते हैं -
प्रेम करते हुए लोग ।

मन को किया उदार
दिल को दरिया, फिर देखा तो पाया
कितने मज़बूर होते हैं-
प्रेम करते हुए लोग।