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फ़रेबे-ज़िंदगी है और मैं हूँ / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी

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फ़रेबे-ज़िंदगी है और मैं हूँ
बला की बेबसी है और मैं हूँ

वही संजीदगी है और मैं हूँ
वही शोरीदगी है और मैं हूँ

जहाँ मैं हूँ वहाँ कोई नहीं है
मेरी आवारगी है और मैं हूँ

बढ़ा जाता हूँ ख़ुद राहे-अदम पर
तुम्हारी रौशनी है और मैं हूँ

जनाज़ा उठ चुका है दिलबरी का
शिकस्ते-आशिक़ी है और मैं हूँ

तमाशाई हूँ अपनी हसरतों का
किसी की बेरुख़ी है और मैं हूँ

निगाहों में उधर बेबाकियाँ हैं
इधर शर्मिंदगी है और मैं हूँ

वहाँ ढूँढो मुझे ऐ ‘चाँद’ जाकर
जहाँ बस आगही है और मैं हूँ