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फ़सलें देती हैं आवाज़ / ब्रजमोहन

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फ़सलें देती हैं आवाज़
खेत हैं लेते अँगड़ाई
बुलाता है गाँव चल तू भी...

शैतानों को पाँव तले अब रौन्द रहा इनसान
धरती बोल रही
बिजली की गर्जन की भाँति कौन्ध रहा इनसान
धरती बोल रही
भय से थर-थर काँपे ताज... खेत ...

लपटों में बदला है देखो सारा ख़ून-पसीना
धरती डोल रही
खड़ा सामने बन्दूकों के हर फ़ौलादी सीना
धरती डोल रही
मौत से लड़ते हैं जाँबाज़ ... खेत ...

आग लगी बहियों में देखो उड़ता कितना ख़ून
धरती खोल रही
देखो जँगल का टूटा है हर जँगली कानून
धरती खोल रही
बदलता जीने का अन्दाज़ ... खेत ...