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फिर उन्हीं आँखों की ख़ुशबू में नहाने के लिये / गुलाब खंडेलवाल

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फिर उन्हीं आँखों की ख़ुशबू में नहाने के लिये
आ गए हम दिल पे फिर एक चोट खाने के लिये

लो कसम, मुँह से अगर हमने लगाई हो शराब
यह बहाना था गले तुमको लगाने के लिये

यह तो अच्छा है कि बिस्तर लग गया है बाग़ में
हम कहाँ ये फूल पाते घर सजाने के लिये!

आग जो दिल में फतिंगे के, वही दीपक में है
यह है जलने के लिये, वह है जलाने के लिये

ज़िन्दगी की हाट में वे रंग बिकते हैं, गुलाब!
जिनको लाया था कभी तू उस अजाने के लिये