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फैज़ के नाम / रेशमा हिंगोरानी

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आज फिर ढूँढ्ने निकला है तुझको दिल मेरा,
आज फिर जायेगी बिखर उन्हीं फूलों की महक,

फिर से शादाब<ref>ताज़ा</ref> हो जायेंगी वो बिस्मिल<ref>ज़ख़्मी</ref> यादें,
जिनसे फिर आज ये मौजूद<ref>आज</ref> ख़राबा<ref>वीरान जगह</ref> होगा,

मरहमे-जाँ!<ref>जिंदगी की मरहम</ref> मुतालबा<ref>माँग</ref> करें हैं हमसाए<ref>पड़ोसी</ref>,
सियाह<ref>काले</ref> ख़याल मेरे, और ये मेरी तन्हाई,

खुश्क आँखों से यूँ ही बहता रहेगा खूनाब<ref>खून के आँसू</ref>,
कहाँ बीमारे-अलम<ref>आशिक</ref> आएगा बहलाने को?

आज फिर और कहीं ले चलूँ गमे-दौराँ<ref>जिंदगी के गम</ref>,
इस से आगे भी तो होगा कोई आबाद जहाँ,

नुक्रई<ref>चांदी के</ref> माहे-ताबाँ<ref>जो चाँद सारी दुनिया को रौशन करता है</ref>, और चमकते तारे,
जो मेरे रंज<ref>दुःख / गम</ref> को पिघला के बहा जाएँगे,

आज फिर सैले-अश्क<ref>आँसुओं की बाढ़</ref> मेरी रगों से निकला,
आज फिर झूम के, लगता है, कि मह<ref>चाँद</ref> बरसेगा!

शब्दार्थ
<references/>