भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बँटा हुआ एक घर / कुँवर दिनेश

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 29 मई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मैंने कविता लिखनी चाही
एक घर पे:
एक ही छत के नीचे
बंटा हुआ एक घ र
कितने ही कट-
घ रों में विभाजित,
सब में पृथक्-
पृथक् चूल्हा,
चूल्हे से उठता धुँआ-
सब क-ट-घ-रों में फैल रहा,
धुँए में कुछ भी
साफ़ नहीं दीख पड़ रहा...
धुँआ हटे
तो कविता बने...