भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बच्चे कहानी सुन रहे हैं / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 22 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=और...हमने सन्धियाँ कीं / क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह ज़गह है कौन-सी, बोलो
जहाँ पर
अभी भी बच्चे कहानी सुन रहे हैं

बात होती झील की भी
है यहाँ पर
यह इधर क्या -
लग रहा जैसे दुआ-घर

चल रहा करघा कहीं है
क्या अभी भी
रेशमी चादर जुलाहे बुन रहे हैं

दिख रहा जो उधर
है क्या मेमना वह
हुई कलकल-
क्या कहीं सोता रहा बह

आई ख़ुशबू
क्या कहीं पर है बगीचा
जहाँ आशिक फूल अब भी चुन रहे हैं

पक्षियों की चहचहाहट भी
इधर है
नीड़ जिस पर
सुनो, वह बरगद किधर है

यह करिश्मा हुआ कैसे
क्या यहाँ पर
बर्फ़ होते वक़्त में फागुन रहे हैं