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बजा-बजा कर लोटा थाली / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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रावण बना बनाकरहम सब,
हँसते पीट-पीट कर थाली।

गुल्ली दीदी वंशी दीदी,
रावण हैं हर साल बनाती।
दफ़्ती कागज़ काट-काट कर,
उनसे हैं दस शीश बनाती।
आँखें लाल भयंकर करके,
रंग देती हैं मूँछें काली।

अमित एक मोठे थैले में,
भर देता है कूड़ा करकट।
रूद्र आद्या के संग मिलकर,
पेट बना देता है झटपट।
हाथ पैर लकड़ी कागज़ के,
ओंठों पर रच देते लाली।

बी च पेट में भर देते हैं,
पापाजी दस बीस पटाखे।
फट-फट कर जब रावण जलता,
हम सब खुश होकर चिल्लाते।
खूब नाचते खूब कूदते,
बजा-बजा कर लोटा थाली।