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बदल कर रुख़ हवा उस छोर से आए तो अच्छा है/ सतपाल 'ख़याल'
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द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:39, 4 अप्रैल 2010 का अवतरण
बदल कर रुख़ हवा उस छोर से आए तो अच्छा है
मेरी कश्ती भी साहिल तक पहुँच जाए तो अच्छा है
मसाइल और भी मौजूद हैं इसके सिवा लेकिन
महब्बत का भी थोड़ा ज़िक्र हो जाए तो अच्छा है
अदालत भी उसी की है, वक़ालत भी उसी की है
वो पेचीदा दलीलों में न उलझाए तो अच्छा है
जहाँ फूलों की बारिश हो, जहाँ ख़ुशबू के दरिया हों
कोई ऐसे जहाँ की राह बतलाए तो अच्छा है
कभी ऐसा नहीं होगा मुझे मालूम है फिर भी
मेरे हाथों में तेरा हाथ आ जाए तो अच्छा है