भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरखा आथे / लाला जगदलपुरी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:28, 19 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदलपुरी }} {{KKCatChhattisgarhiRachna}} <poem>(1) खे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(1)
खेती ल हुसियार बनाय बर
भुइयाँ म बरसा आथे |
जिनगी ल ओसार बनाय बर
भुइयाँ म बरखा आथे |
सोन बनाय बर माटी ल
सपना ल सिरतोन बनाय बर,
आँसू ल बनिहार बनाय बर
भुइयाँ म बरखा आथे |

(2)
बाजत रहिथे झिमिर-झिमिर
रोज चिकारा अस बरखा के |
बाजत रहिथे घड़-घड़-घड़
रोज नंगारा अस बरखा के |
खुसियाली के चिट्ठी लेके
बादर दुरिहा-दुरिहा जाथे,
करिया-करिया बादर ल
समझव हलकारा अस बरखा के |

(3)
जोत जोगनी के तारा अस
जुग-जुग बरथे अँधियारी म |
आसा, मन के, बिजली बन के
चम-चम करथे अँधियारी म |
मेचका मन के आरो मिलथे
कपस-कपस जाथे लइका हर,
हवा बही कस कभू उदुप ले
कहूँ खुसरथे अँधियारी म |

(4)
कहूँ तोरइ, तूमा, रमकेलिया
झूलत होवे बखरी म |
कहूँ करेला – कुंदरु अउ रखिया
फूलत होवे बखरी म |
कहूँ जरी ह लामे होही,
बरबट्टी ह ओरमे होही,
खुस होक लइका-पिचका मन
बूलत होही बखरी म |

(5)
अतका पानी दे तैं, जतका
जिनगी के बिस्वास माँगथे |
अतका पानी दे तैं, जतका
अन लछमी ह साँस माँगथे |
मोर देस के गाँव-गाँव ल
अतका पानी दे तैं बरखा,
जतका पानी पनिहारिन ल
तरिया तीर पियास माँगथे |