भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बातों की रातें / ओंकारेश्वर दयाल 'नीरद'

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:40, 7 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओंकारेश्वर दयाल 'नीरद' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँगन में बैठी दो चिड़ियाँ
करती थीं आपस में बातें,
आओ हिल-मिलकर हम दोनों
आज काट दें काली रातें।

तभी अचानक नील गगन में
कहीं दूर से चंदा बोला,
चमक रहा था, झलक रहा था
जैसे हो चाँदी का गोला।

मेरा भी मन साथ तुम्हारे
बातें करने को है करता,
पर नीचे मैं कैसे जाऊँ
यही रात-दिन सोचा करता।

यह सुनकर एक चिड़िया बोली
हम तो रोज उड़ा करते हैं,
तुम तो बहुत दूर रहते हो-
यह ही सोच डरा करते हैं।

अच्छा चंदा भैया, हमको
वहीं बैठकर गीत सुनाओ,
या, चाँदी के पंखों पर रख
अपना देश यहाँ ले आओ।

दूर सुन रहा था सूरज भी
चंदा औ’ चिड़ियों की बातें,
बोला, आता हूँ अब मैं, लो-
खत्म हुई बातों की रातें।