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बोयो बस बिरद मैँ बोरी भई बरजत / देव
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बोयो बस बिरद मैँ बोरी भई बरजत ,
मेरे बार बार बीर कोई पास बैठो जनि ।
सिगरी सयानी तुम बिगरी अकेली हौँ ही ,
गोहन मैँ छाँड़ो मोसोँ भौँहन अमेठो जनि ।
कुलटा कलँकिनी हौँ कायर कुमति कूर ,
काहू के न काम की निकाम यातें ऎँठो जनि ।
देव तहाँ बैठियत जहाँ बुद्धि बढै हौँ तो ,
बैठी हौँ बिकल कोई मोहि मिलि बैठो जनि
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।