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भव बंधन का मान करे / प्रेमलता त्रिपाठी

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धरा गगन की प्रीति सयानी,जीव सकल संधान करें ।
कठिन साधना पंचतत्व की,भव बंधन का मान करें ।

प्रीति समाये नैनों में नित, ऊँचा है भावों नाता,
शस्य श्यामला पावन धरणी,तन-मन मोहित गान करें ।

गंग यमुन के कूल बसे, अवध राम की श्याम गली ,
धर्म मर्म मर्यादा जिनकी ,नित्य हृदय अवधान करें ।

भरे जहाँ आलोक धरा पर,लाली ले उदय अस्त की,
नवल चेतना लेकर आये,रविकर सतत विहान करें ।

निर्झर बहकर सागर बनते,पावन गंगा स्रोत यहीं,
मलिन न होने पाये छाया,पुण्य सलिल जल स्नान करें ।

तनमन अर्पित वीरभूमि का,जनअंतस क्यों व्यथित हुआ,
कटुता आपस की दूर करें,अमल नीति अभिमान करें ।