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भाषाओं में प्रेम / प्रांजलि अवस्थी

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याचक, प्रेम का नहीं
सहानुभूति का पात्र है
इसलिए शब्दों में याचना को मैंने
जगह नहीं दी

किसी भी वजह से
शब्दों का निढाल हो जाना
मुझे पसंद नहीं था
मुझे अपने अंदर व्यक्त
अभ्यांतर भाषाओं की अकड़ पसंद थी

इसलिए प्रेम को मैंने
शब्दों में नहीं भाषाओं में सराहा
जहाँ प्रेम
मूक बधिर पात्र होने पर भी गौरवान्वित था

और समाष्टि संदर्भ में प्रेम पर
शब्दों से ज़्यादा भाषा कि पकड़ थी
इसलिए भी
प्रेम ने भाषाओं का सेवन किया