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मान लिया लोहा सूरज ने / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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टिमकी घर से चली बाँधकर,
मुँह पर, सिर पर गमछा।

गरम-गरम लू के सर्राटे,
ताप सहा न जाये।
इंसानों को घर के भीतर,
ए.सी. कूलर भाये।
आग गिराता सूरज सिर पर,
घोड़े पर आ धमका।

इतनी गरमी फिर भी टिमकी,
को ट्यूशन जाना है।
गरम आग के शोले गिरते,
उनसे बच पाना है।
उसे याद है सिर गमछे का,
रिश्ता जनम-जनम का।

कान ढँक लिए, ओढ़ा सिर पर,
आधा मुँह ढँक डाला।
टू व्हीलर पर घर से चल दी,
वीर बहादुर बाला।
मान लिया लोहा सूरज ने,
भी उसकी दम खम का।