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मेरा मित्र / सुरेश विमल

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एक मित्र है मेरा
मैं उससे अक्सर
अंतरंग बातें किया करता हूँ
और लिया करता हूँ परामर्श
दुविधा के क्षणों में

मेरे आस पास
बना रहता है वह
हवा सा... निरन्तर
और मैं कभी भी
उसका पल्लू
अपनी मुट्ठी में
खींच सकता हूँ।

पकड़ने नहीं देता वह मुझे
नदी के नीले जल में
उछलती हुई मछलियाँ
तोड़ने नहीं देता
टहनियों से
गुलाब के ताज़े फूल

लेकिन अचानक
उदास हो जाता है वह
जब मैं उससे पूछता हूँ
कि क्यों मेरा पड़ोसी
अपने अबोध बच्चों को
बेरहमी से मारता है
और क्यों उसकी शक्ल
दिनोदिन
अधिक डरावनी
होती जा रही है?
क्यों-
एक बेबसी भरा कालापन
उतरता जा रहा है
सृजनरत श्रमदूतों की
आंखों के आसपास?

जब मैं खर्राटे भरता हूँ
तारों भरी रात में
बेचैनी से वह
फुटपाथों पर पसरे हुए
लोगों के बीच गश्त लगाता है...

भूख से पिचके हुए पेटों के
लोमहर्षक गड्ढों को
भरने के उपाय सोचता है
किंकर्तव्यविमूढ़-सा वह
कभी ख़ुद को
और कभी अपनी सृष्टि को
कोसता है...!

उसके देखते-देखते आंधियाँ
निर्दयतापूर्वक उड़ा ले जाती है
गरीबों के छप्पर
प्रलय कर डालता है
जल-दानव
और दुर्भिक्ष
मचा देता है हाहाकार

अक्सर कहीं
कुछ ग़लत घट जाता है
परेशान रहता है मेरा मित्र
शायद वह
अकेला पड़ता जा रहा है
नितान्त अकेला...

सोच रहा हूँ मैं
कि कैसे बटाऊँ उसका हाथ
कैसे दूँ उसे
उसके अनुग्रहों का प्रतिदान?