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मेरी काशी / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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अनुभूति विशेषतः हृदय रही
यह शिव नगरी मेरी ठहरी
हूँ उस औढर की प्रियतमा
जो इस नगरी का है प्रहरी

कण-कण से है रिश्ता मेरा
अब शिव ने मुझे पुकारा है
रही ज्योतिर्मय, शिवमयी सदा
काशी ने पुनः स्वीकारा है....

रही देवों की नगरी काशी
पर विश्वनाथ तो मेरे हैं
अद्भुत हैं अनंत अगोचर हैं
मधुरिम संबंध घनेरे हैं...

शिव शक्ति की संपूर्णता मैं
वहीं पार्वती की कोमलता
जब हवन कुंड में सती हुई
थी रही प्रेम की व्यापकता...

भले अंग-प्रत्यंग विभक्त गिरे
तेरे काँधे जो सुख पाया है
उस मर्म हेतु कोई शब्द नहीं
दर्शन से पृथक् ये माया है...

परित्याग सती को मौन हुआ
तू प्रखर प्रेम अव्यक्त किया
जब आत्म-हनन की बात सुनी
तब विपुल-प्रेम जग व्यक्त किया...!

ऐ विश्वनाथ तेरी काशी
पर घट-घट आधिपत्य मेरा
तू ज्योतिर्लिंग समाहित है
इस ज्योतिर्मय स्वामित्व तेरा...