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मेरे लिए ये कविताएँ अंत हैं / दिलीप चित्रे

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मेरे लिए ये कविताएं अंत हैं
ये एक तरह से मुझे ख़त्म करती हैं
भले ही ये किसी सुइसाइड बॉम्‍बर की तरह
आपके पास-पड़ोस में फट जाएँ

मैं आतंकवादी नहीं हूँ लेकिन आतंक के युग में जीता हूँ
इनमें से कुछ मेरे कोमल मुहावरों में घुस जाते हैं
मैं किसी इलहाम को सच करनेवाला जेहादी भी नहीं हूँ
बस मेरी कविताएँ ही मुझे ख़त्म करती हैं

फिर एक बार नए आश्चर्य पाने को
मैं इंतज़ार करता हुआ खालीपन बन जाता हूँ
लेकिन ज्यादातर वे दर्द ही लाते हैं
कुछ कभी लाते हैं अलभ्य प्रकटन
सीमाहीन सुरों सा

इसका कोई अंत नहीं, सिवाय मेरे
दूर मुझसे बल्कि सभी कविता उड़ी जा रही है।

अनुवाद : तुषार धवल