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मेहनत रंग लाएगी / असंगघोष

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बहुत दूर
उस क्षितिज पर
जहाँ आकाश-धरती
एक होते हुए दिखाई देते थे
पहाड़ और आकाश के
मिलन बिन्दु पर
यह क्षितिज !
तुम्हारे फैलाए अन्धेरे में
गुम हो गया है,

इसके उत्‍तुंग पर तूने बैठा दिया है
अपनी मुफ़्त की कमाई का
एक और साधन !
तुम्हारी धर्म-ध्वजा
वहाँ भी
एकान्त की निस्तब्धता भंग करती
फड़फड़ाती, लहराती हुई
सबको मुँह चिढ़ाती है,
यह उकसाती हैं
कि धूल-धूसरित करना है इसे
हम पूरा करेंगे अपना मन्तव्य,
इसकी जड़ों को खोद
भरभराकर गिराने की कला
तुमसे हम भी सीख गए हैं !
इसलिए
तुम इसे
कब तक थामोगे ?
इसे गिरना ही होगा
हमारे हाथों पड़ी
कुदाली की चोट पर
गहरी नींव का पत्थर बाहर आते ही,
फड़फड़ाती धर्म-ध्वजा भी
शान्त हो जाएगी
तय हैं
हमारी मेहनत रंग लाएगी।