भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं नहीं, लेकिन मेरा अफ़साना उनके दिल में है / साक़िब लखनवी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 9 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साक़िब लखनवी }} <poem> मैं नहीं, लेकिन मेरा अफ़साना उ...)
मैं नहीं, लेकिन मेरा अफ़साना उनके दिल में है।
जानता हूँ मैं कि किस रग में यह नश्तर रह गया॥
आशियाने के तनज़्ज़ुल से बहुत खुश हूँ कि वो,
इस क़दर उतरा कि फूलों के बराबर रह गया॥