भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं ने जो ये कहा तुम्हें उल्फ़त मिरी नहीं / लाला माधव राम 'जौहर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 12 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला माधव राम 'जौहर' |संग्रह= }} {{KKCatGhaza...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं ने जो ये कहा तुम्हें उल्फ़त मिरी नहीं
गर्दन झुका के नाज़ से बोले कि जी नहीं

जब तुम जुदा हुए तो ख़ुदा हम को मौत दे
मंज़ूर इस तरह की हमें ज़िंदगी नहीं

तू जिस को चाहे ख़ाक से मसनद-नशीं करे
है बे-हिसाब फ़ैज़ तेरा कुछ कमी नहीं

नासेह नसीहतें ये कहाँ याद रहती हैं
हज़रत अभी किसी से तबीअत लगी नहीं

‘जौहर’ ख़ुदा हसीनों से हर एक को बचाए
उन लोगों को ख़याल किसी का कभी नहीं