भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोतियों की तरह चेहरा तेरा सच्चा लगता / इकराम राजस्थानी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:42, 30 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इकराम राजस्थानी }} {{KKCatGhazal}} <poem> मोतियों की तरह चेहर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मोतियों की तरह चेहरा तेरा सच्चा लगता,
हमको दुनिया में कोई और न अच्छा लगता।

तेरे माथे पे जो बिंदिया है, सलामत रखना,
ये अँधेरों में कोई चाँद चमकता लगता।

किस तरह आँख मिलायें, कभी ये तो बतला,
तेरी पलकों पे सदा शर्म का पहरा लगता।

मैंने माँगा था इबादत में, इन्हीं लमहों को,
साथ में तेरे मुझे वक्त भी ठहरा लगता।