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मोर गाँव / पीसी लाल यादव

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मोर गाँव, पिरित के छाँव, अबड़ नीक लागे।
मंदरस कस गुरतुर भाखा, अबड़ मीठ लागे॥

राचर-बेंस के चर्र-चूँ बाजे,
तब जागे सुरूज देवता।
सोन किरन के छरा-छिटका
देवय जांगर पेरे के नेवता॥

ये अनपूरना दाई के पाँव, अबड़ नीक लागे।
मोर गाँव, पिरित के छाँव, अबड़ लनक लागे।

नांगर-जुड़ा बोहे किसनहा
बाजय बईला के घाँटी।
देंह ले ओगरे पछीना तर-तर
ममहाय महतारी-माटी।

ये लछमी दाई के पाँव, अबड़ नीक लागे
मोर गाँव, पिरित के छाँव, अबड़ लनक लागे।

घाट-घरौंदा के खेत-खार म
बाजय बरदिहा के बँसरी।
आमा डार में कुहके-कोइली,
सुवा-मैना पारे सिसरी॥

सुख-सुम्मत सुन्ता नियाँव, अबड़ नीक लागे
मोर गाँव, पिरित के छाँव, अबड़ लनक लागे।