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यह हृदय सिर्फ़ एक सुर जानता है / जीवनानंद दास / उत्पल बैनर्जी

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सिन्धु की लहरों-जैसा सिर्फ़ एक गीत जानता हूँ मैं,
मैं भूल गया हूँ पृथ्वी और आकाश की और सब भाषाएँ,
सबके बीच मैंने सिर्फ़ तुम्हें पहचाना है
जाना है तुम्हारा प्यार !

जीवन के कोलाहल में सबसे पहले जाकर
मैंने तुम्हें ही पुकारा है!
दिन डूबने पर अँधेरे आसमान के सीने पर
जो जगह रह गई है थिर नक्षत्रों के विभोर में
सिन्धु की लहरों के सीने में जो फेन की प्यास है,
मनुष्य की वेदना के गह्वर के अँधेरे में
उजाले की मानिन्द जागी रहती है जो आशा,

पीले पत्तों के सीनों पर
जाड़े की किसी रात
लगी रहती है मृत्यु की जो मीठी गन्ध,
मेरे हृदय में आकर तुम ठीक उसी तरह से जागी हुई हो !

धरती के शुद्ध पुरोहितों की तरह
उस सुबह के समुद्र का पानी
उस दूर वाले आसमान के सीने पर से
जिस तरह पोंछ रहा है अँधेरा
तुमने भी सीने की सारी पीड़ाएँ धो दी हैं --
सारे अफ़सोस -- सारे कलंक !

तुम जगे हुए हो
इसीलिए मैं इस पृथ्वी पर जागने के
आयोजन करता हूँ,

तुम सो जाओगी जब
तुम्हारे सीने पर मृत्यु बनकर सो जाऊँगा मैं !

मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी