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यहीं गोकुल यहीं वृन्दावन बन जाए /रमा द्विवेदी

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आसमां झुक के धरा से सदा ही कहता ये ,
राधा बिन होली कैसी श्याम यही समझाये।
प्रेम के रंग बिना रंग सभी फीके हैं,
जिसको मिल जाए ये वो मालामाल हो जाए ॥
न हो जहां बैर-भाव ऎसे मीत पाएं सब,
दिल में खिलें गुलाब ऎसी प्रीत पा जाए ॥
नाचे मीरा सी कोई , कोई पुजारिन राधा,
और गिरिराज भी घनश्याम स्वयं बन जाए ॥
कृष्ण की बंशी बजे गोपियों की थिरकन हो,
यहीं गोकुल यहीं पे विन्दावन बन जाए ॥
आओ सब मिलकर रंगों में डूब जाएं हम
प्रेम ही प्रेम हो बस प्रेम ही बरसा जाएं ॥