भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये बेकसो-बेक़रार चेहरे(ग़ज़ल)/ अली सरदार जाफ़री

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:23, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण ()

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये बेकसो-बेक़रार चेहरे
सदियों के ये सोगवार चेहरे

मिट्टी में पड़े दमक रहे हैं
हीरों की तरह हज़ार चेहरे

ले जाके इन्हें कहाँ सजाएँ
ये भूक के शाहकार<ref>भूख की सर्वोत्तम कृति</ref> चेहरे

अफ़्रीका -ओ-एशिया की ज़ीनत
ये नादिरे-रोज़गार<ref>दुनिया भर में सब से श्रेष्ठ</ref>चेहरे

माज़ी के खण्डर की तरह दिलकश
ये शम्‌ए-सरे-मज़ार चेहरे

फ़ीके हैं फ़रोगे-जर के बावस्फ़
ताबिन्दा हैं ख़ाक़सार चेहरे

गुज़रे हैं निगाहो-दिल से होकर
हर तरह के बेशुमार चेहरे

मग़रूर अना के घोंसलों में
बैठे हुए कमइयार<ref>ख़राब व्यक्ति</ref> चेहरे

नाक़ाबिले-इल्तिफ़ात<ref>उपेक्षा करने योग्य</ref> आँखें
नाक़ाबिले-ऐतिबार<ref>अविश्वासनीय</ref> चेहरे

शुहरत<ref>ख्याति</ref> के बलन्द आस्माँ पर
छुटते हुए-से अनार चेहरे

पल भर में धुआँ-धुआँ मगर सब
पल भर में फ़क़त ग़ुबार चेहरे

सोने का चढ़ा है पानी
पीतल के ये शानदार चेहरे

पहने हैं नक़ाबे-पारसाई
जन्नत के कि़रायादार चेहरे

इन सब से मगर हसीनतर हैं
रिन्दों के गुनाहगार चेहरे

हँसते हुए नैज़ा-ओ-सिनाँ पर
वो शबनमे-नोके-ख़ार चेहरे

चुपके-चुपके सुलग रहे हैं
आतशकदः ए-बहार चेहरे

शो’लों के मिज़ाज-आशना हैं
बर्फ़ाब-से बेशरार चेहरे

उम्मीद की शम्‌अ़ से फ़ुरोज़ाँ
शाइस्तः ए-इन्तिज़ार<ref>प्रतीक्षा के योग्य</ref> चेहरे

शब्दार्थ
<references/>