भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये वहम है मेरा के हक़ीक़त में मिला है / राशिद हामिदी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:31, 8 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राशिद हामिदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> ये वहम है ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये वहम है मेरा के हक़ीक़त में मिला है
ख़ुर्शीद मुझे वादी-ए-ज़ुल्मत में मिला है

शामिल मेरी तहज़ीब में है हक़ की हिमायत
अंदाज़ बग़ावत का विरासत में मिला है

ता-उम्र रिफ़ाक़त की क़सम खाई थी जिस ने
बिछड़ा है तो फिर मुझ को क़यामत में मिला है

रूकते ही क़दम पाँव पकड़ लें न मसाएल
हर शख़्स इसी ख़ौफ़ से उज्लत में मिला है

कुछ और ठहर जाओ सर-ए-कू-ए-तमन्ना
ये हुक्म मुझे लम्हा-ए-हिजरत में मिला है

आदाब किया जाए किसे कितने अदब से
ये फ़न मुझे बरसों की रियाज़त में मिला है

सय्याद ने लगता है के फ़ितरत ही बदल दी
हर फूल मुझे ख़ार की सूरत में मिला है