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रचनाकार के अवसान पर / सुरेन्द्र रघुवंशी

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वह एक आदमी था
वैसे ही जन्मा था
जैसे हर कोई जन्मता है

उसे भी वैसा ही संसार मिला
जैसा सभी को मिलता है
उसका हृदय ज़्यादा की कोमल था
छोटी-छोटी बातों के कंकड़ चुभते थे उसे
उसके पहले चलने लगती थीं उसकी संवेदनाएँ
तीव्रगामी थे सोच के घोड़े

बाज़ार में सजी-धजी दुकानों के बीच
वह एक फक्कड़ यात्री था
सिक्कों की खनक
नाकामयाब रही जिसे लुभाने में

उसका क़द
कोई नहीं नाप पाया ठीक-ठीक
उसे अपनी नहीं
पूरे विश्व की चिन्ताएँ सताती रहीं
लोगों के लिए वह एक अजूबा था

पृष्ठों की श्वेत धरती पर
उसने शब्दों के बीज बोए
कोरे कैैनवास पर
उसने बिखेरे विविध रंग
शुष्क पड़े रेगिस्तान में
उसने बहाई भावनाओं की नदी
स्वाभाविक-सी लगने वाली व्यवस्था पर
उसने लगाए प्रश्न-चिन्ह

उसे भी जाना था एक दिन दुनिया से
वह आम जीवन जीकर नहीं गया
एक देह के इतर
वह ज़िन्दा रहा
हर शब्द में साँस लेता हुआ